Wednesday, February 4, 2009

लकड़ी में घुन सा लगता hai

लकड़ी में घुन सा लगता है
इक सपना मन में पलता है
जीवन दूर बहुत है उस से
पर देखो वो कब से
दिन रात यूँ मुझको छलता है
इक सपना मन में पलता है


फीके संकल्पों कि क्यों तीखी आशा
विद्रोही मन को भी रोके
ये क्यों बढकर के मर्यादा
जब कोई मुझको गरज़ नहीं दुनिया के सच्चे झूठों से
फिर क्यों इनकी बातों से मन धुक धुक कर के जलता है
लकड़ी में घुन सा लगता है


है तो सारा अम्बर मेरा
तारे मेरे सूरज मेरा
माँगूं तो अब भी शायद
हो धरती और सागर मेरा
पर वो मुझसे रूठ गया जो
पर वो मेरा छूट गया जो
चन्दा मुझको खलता है
इक सपना मन में पलता है

मन का ही ये दीपक मेरे
बुझता है खुल कर ही क्यों जलता है
लकड़ी में घुन सा लगता है

7 comments:

  1. अच्छा प्रयास लिखते रहे

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  2. @ Arun: Shukriya, koshish kar rahi hoon

    @ Web: i am guessing that is a compliment :) shukriya.

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  3. उत्तम! ब्लाग जगत में पूरे उत्साह के साथ आपका स्वागत है। आपके शब्दों का सागर हमें हमेशा जोड़े रखेगा। कहते हैं, दो लोगों की मुलाकात बेवजह नहीं होती। मुलाकात आपकी और हमारी। मुलाकात यहां ब्लॉगर्स की। मुलाकात विचारों की, सब जुड़े हुए हैं।
    नियमित लिखें। बेहतर लिखें। हमारी शुभकामनाएं आपके साथ हैं। मिलते रहेंगे।

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  4. बहुत सुंदर…आपके इस सुंदर से चिटठे के साथ आपका ब्‍लाग जगत में स्‍वागत है…..आशा है , आप अपनी प्रतिभा से हिन्‍दी चिटठा जगत को समृद्ध करने और हिन्‍दी पाठको को ज्ञान बांटने के साथ साथ खुद भी सफलता प्राप्‍त करेंगे …..हमारी शुभकामनाएं आपके साथ हैं।

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  5. सुंदर
    भावों की अभिव्यक्ति मन को सुकुन पहुंचाती है।
    लिखते रहि‌ए लिखने वालों की मंज़िल यही है ।
    कविता,गज़ल और शेर के लि‌ए मेरे ब्लोग पर स्वागत है ।
    मेरे द्वारा संपादित पत्रिका देखें
    www.zindagilive08.blogspot.com
    आर्ट के लि‌ए देखें
    www.chitrasansar.blogspot.com

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