Saturday, December 27, 2008

Main nahin murali ki tano me

मैं नहीं मुरली की तानो में
वो स्वर नहीं मेरे कानो में

मैं राधा की आंखों का जलता अंगार नहीं
मैं रुक्मिणी के पावों का भी श्रृंगार नहीं

मैं मीरा के होंठों से महका कोई गान नहीं
मैं गोकुल की गलियों का भी तो पाषाण नहीं

मैं कोई नहीं
मैं कुछ भी नहीं

वो देखे मुझको सही
पर मुझको भी तो दिखते श्याम नहीं

क्यों कोई नहीं
क्यों कुछ भी नहीं

क्यों राधा सा मिला आधार नहीं
क्यों रुक्मिणी सा मिरा सिंगार नहीं

क्यों गीत मेरे मीरा से कम हैं
क्यों पत्थरों में ज़ियादा दम है

क्यों इस तप को लगता फल नहीं
अब आज नहीं तो चल क्यों कल नहीं

Thursday, December 25, 2008

ye bhi kyon lagta uska apradh nahi

ये भी क्यों लगता उसका अपराध नहीं
फिर मिलने की की जो उसने साध नहीं
जमना के पानी में फिर
उट्ठा वो ऊफान नहीं
ये दुखः जरना आसान नहीं
अब कृष्ण कहीं और राध कहीं
और मिलने की
की ही उसने साध नहीं

Saturday, December 20, 2008

vo ik khawab

वो इक ख्वाब
बेहद हसीन था
वो सच हो जायेगा
हमको यकीन था
उस के ख्याल में
रातें नहीं
दिन गवाएं थे हमने
बेशुमार लम्हे
उसके तस्सव्वुर में बिताये थे हमने

यूँ वक्त जाया नहीं करते
कुछ संजीदा लम्हों का मशवरा था
पर
कहाँ सुनता था किसी की
की दिल था

हर हकीकत से ज़ियादा अज़ीज़ था
वो इक ख्वाब
दिल के बेहद करीब था

मगर हैरान हूँ
की वो जब सच हुआ
जों होना चाहिए था
मुझको वो गम हुआ

सीने में
धड़कता ही रहा अपलक
उसके जाने से
ये मर क्यों गया

मेरी बेरुखी से शायाद रूठ ही गया
अब सोचती हूँ तो मुझको भूल भी गया