Thursday, February 19, 2009

mujhko tumse baandhe

लैला के लिए, और थोडी सी तारिक के लिए भी , या शायद बहुत सारी, नहीं, सारी कि सारी नहीं ....

मुझको तुमसे बांधे ये जो इक ज़ंजीर है
धरती से अम्बर को जाते सपनो की तक़रीर है
लिखी गई मालिक से तो
ख़ुद खींची हांथों पर मैंने ऐसी भी कोई लकीर है
मुझको तुमसे बांधे ये जो इक ज़ंजीर है
धरती से अम्बर को जाते सपनो की तक़रीर है

No comments:

Post a Comment