Saturday, December 20, 2008

vo ik khawab

वो इक ख्वाब
बेहद हसीन था
वो सच हो जायेगा
हमको यकीन था
उस के ख्याल में
रातें नहीं
दिन गवाएं थे हमने
बेशुमार लम्हे
उसके तस्सव्वुर में बिताये थे हमने

यूँ वक्त जाया नहीं करते
कुछ संजीदा लम्हों का मशवरा था
पर
कहाँ सुनता था किसी की
की दिल था

हर हकीकत से ज़ियादा अज़ीज़ था
वो इक ख्वाब
दिल के बेहद करीब था

मगर हैरान हूँ
की वो जब सच हुआ
जों होना चाहिए था
मुझको वो गम हुआ

सीने में
धड़कता ही रहा अपलक
उसके जाने से
ये मर क्यों गया

मेरी बेरुखी से शायाद रूठ ही गया
अब सोचती हूँ तो मुझको भूल भी गया

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