मैं नहीं मुरली की तानो में
वो स्वर नहीं मेरे कानो में
मैं राधा की आंखों का जलता अंगार नहीं
मैं रुक्मिणी के पावों का भी श्रृंगार नहीं
मैं मीरा के होंठों से महका कोई गान नहीं
मैं गोकुल की गलियों का भी तो पाषाण नहीं
मैं कोई नहीं
मैं कुछ भी नहीं
वो न देखे मुझको न सही
पर मुझको भी तो दिखते श्याम नहीं
क्यों कोई नहीं
क्यों कुछ भी नहीं
क्यों राधा सा मिला आधार नहीं
क्यों रुक्मिणी सा मिरा सिंगार नहीं
क्यों गीत मेरे मीरा से कम हैं
क्यों पत्थरों में ज़ियादा दम है
क्यों इस तप को लगता फल नहीं
अब आज नहीं तो चल क्यों कल नहीं
Saturday, December 27, 2008
Thursday, December 25, 2008
ye bhi kyon lagta uska apradh nahi
ये भी क्यों लगता उसका अपराध नहीं
फिर मिलने की की जो उसने साध नहीं
जमना के पानी में फिर
उट्ठा वो ऊफान नहीं
ये दुखः जरना आसान नहीं
अब कृष्ण कहीं और राध कहीं
और मिलने की
की ही उसने साध नहीं
फिर मिलने की की जो उसने साध नहीं
जमना के पानी में फिर
उट्ठा वो ऊफान नहीं
ये दुखः जरना आसान नहीं
अब कृष्ण कहीं और राध कहीं
और मिलने की
की ही उसने साध नहीं
Saturday, December 20, 2008
vo ik khawab
वो इक ख्वाब
बेहद हसीन था
वो सच हो जायेगा
हमको यकीन था
उस के ख्याल में
रातें नहीं
दिन गवाएं थे हमने
बेशुमार लम्हे
उसके तस्सव्वुर में बिताये थे हमने
यूँ वक्त जाया नहीं करते
कुछ संजीदा लम्हों का मशवरा था
पर
कहाँ सुनता था किसी की
की दिल था
हर हकीकत से ज़ियादा अज़ीज़ था
वो इक ख्वाब
दिल के बेहद करीब था
मगर हैरान हूँ
की वो जब सच न हुआ
जों होना चाहिए था
मुझको वो गम न हुआ
सीने में
धड़कता ही रहा अपलक
उसके जाने से
ये मर क्यों न गया
मेरी बेरुखी से शायाद रूठ ही गया
अब सोचती हूँ तो मुझको भूल भी गया
बेहद हसीन था
वो सच हो जायेगा
हमको यकीन था
उस के ख्याल में
रातें नहीं
दिन गवाएं थे हमने
बेशुमार लम्हे
उसके तस्सव्वुर में बिताये थे हमने
यूँ वक्त जाया नहीं करते
कुछ संजीदा लम्हों का मशवरा था
पर
कहाँ सुनता था किसी की
की दिल था
हर हकीकत से ज़ियादा अज़ीज़ था
वो इक ख्वाब
दिल के बेहद करीब था
मगर हैरान हूँ
की वो जब सच न हुआ
जों होना चाहिए था
मुझको वो गम न हुआ
सीने में
धड़कता ही रहा अपलक
उसके जाने से
ये मर क्यों न गया
मेरी बेरुखी से शायाद रूठ ही गया
अब सोचती हूँ तो मुझको भूल भी गया
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